Wednesday, November 14, 2007

कल फिर तेरी याद आई....

कल हारे, संमुदर किनारे, 
सुरमई शाम में, 
झंझोङ उल्झे आश्तित्व को, 
बिखरा दीं मैनें अपनी जुल्फें,
बिछा दिये आतुर नैन, 
मांगी, तेरे लिये इक दुआ, 
फिर देर तक सन्नाटे में, 
कुछ भी न था, 
कहने को, 
करने को, 
सोचने को, 
ऎसे में झुंझला के, 
जैसे लिखा था तूनें...... 
भीगी रेत पर,
मैनें अपना नाम लिखा....... 

  कलमबधः जून २२,२००७

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  मइयत-ए-माबदौलत की की गुल पुशार मैंने   अपने मज़ार पे मैंने चढ़ाये जा के फूल , ये सोच आदमी ठीक था इतना बुरा न था। था...