सुरमई शाम में,
झंझोङ उल्झे आश्तित्व को,
बिखरा दीं मैनें अपनी जुल्फें,
बिछा दिये आतुर नैन,
मांगी, तेरे लिये इक दुआ,
फिर देर तक सन्नाटे में,
कुछ भी न था,
कहने को,
करने को,
सोचने को,
ऎसे में झुंझला के,
जैसे लिखा था तूनें......
भीगी रेत पर,
मैनें अपना नाम लिखा.......
कलमबधः जून २२,२००७
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